30-03-98  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सर्व प्राप्तियों की स्मृति इमर्ज कर अचल स्थिति का अनुभव करो और जीवन्मुक्त बनो

आज भाग्य विधाता बाप अपने विश्व में सर्व श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। हर बच्चे के भाग्य की महिमा स्वयं भगवान गा रहे हैं। बाप की महिमा तो आत्मायें गाती हैं लेकिन आप बच्चों की महिमा स्वयं बाप करते हैं। ऐसे कभी स्वप्न में भी सोचा कि हमारा इतना श्रेष्ठ भाग्य बना हुआ है लेकिन बना हुआ था, बन गया। दुनिया के लोग कहते हैं भगवान ने हमको रचा लेकिन न भगवान का पता है, न रचना का पता है। आप हर एक भाग्यवान बच्चा अनुभव और फ़खुर से कहते हो कि हम शिव वंशी ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारियां हैं। हमको मालूम है कि हमें बापदादा ने कैसे रचा! चाहे छोटा बच्चा है, चाहे बुजुर्ग पाण्डव है, शक्तियां हैं किसी से भी पूछेंगे आपका बाप कौन है, तो क्या कहेंगे? फ़लक से कहेंगे ना कि हमको शिव बाप ने ब्रह्मा बाप द्वारा रचा इसलिए हम भगवान के बच्चे हैं। भगवान से डायरेक्ट मिलते हैं, न सिर्फ परम आत्मा वा भगवान हमारा बाप है लेकिन वह बाप भी है, शिक्षक भी है और सतगुरू भी है। सबको यह नशा है? (ताली बजाई) एक हाथ की ताली बजाना - अभी यह भी एक्सरसाइज़ बुजुर्गो को सिखानी पड़ेगी। बच्चों को खुश देख बापदादा भी खुशी में झूलते हैं और सदा कहते - वाह मेरे हर एक श्रेष्ठ भाग्यवान विशेष आत्मायें.....। बाप के रूप में परमात्म पालना का अनुभव कर रहे हो। यह परमात्म पालना सारे कल्प में सिर्फ इस ब्राह्मण जन्म में आप बच्चों को प्राप्त होती है, जिस परमात्म पालना में आत्मा को सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव होता है। परमात्म प्यार सर्व संबंधों का अनुभव कराता है। परमात्म प्यार अपने देह भान को भी भुला देता, साथ-साथ अनेक स्वार्थ के प्यार को भी भुला देता है। ऐसे परमात्म प्यार, परमात्म पालना के अन्दर पलने वाली भाग्यवान आत्मायें हो। कितना आप आत्माओं का भाग्य है जो स्वयं बाप अपने वतन को छोड़ आप गॉडली स्टूडेन्टस को पढ़ाने आते हैं। ऐसा कोई टीचर देखा जो रोज़ सवेरे-सवेरे दूरदेश से पढ़ाने के लिए आवे? ऐसा टीचर कभी देखा? लेकिन आप बच्चों के लिए रोज़ बाप शिक्षक बन आपके पास पढ़ाने आते हैं और कितना सहज पढ़ाते हैं। दो शब्दों की पढ़ाई है - आप और बाप, इन्हीं दो शब्दों में चक्कर कहो, ड्रामा कहो, कल्प वृक्ष कहो सारी नॉलेज समाई हुई है। और पढ़ाई में तो कितना दिमाग पर बोझ पड़ता है और बाप की पढ़ाई से दिमाग हल्का बन जाता है। हल्के की निशानी है ऊंचा उड़ना। हल्की चीज़ स्वत: ही ऊंची होती है। तो इस पढ़ाई से मन-बुद्धि उड़ती कला का अनुभव करती है। तो दिमाग हल्का हुआ ना! तीनों लोकों की नॉलेज मिल जाती है। तो ऐसी पढ़ाई सारे कल्प में कोई ने पढ़ी है। कोई पढ़ाने वाला ऐसा मिला। तो भाग्य है ना! फिर सतगुरू द्वारा श्रीमत ऐसी मिलती है जो सदा के लिए क्या करूं, कैसे चलूं, ऐसे करूं या नहीं करूं, क्या होगा..... यह सब क्वेश्चन्स समाप्त हो जाते हैं। क्या करूं, कैसे करूं, ऐसे करूं या वैसे करूं... इन सब क्वेश्चन्स का एक शब्द में जवाब है - फॉलो फादर। साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो करो, निराकारी स्थिति में अशरीरी बनने में शिव बाप को फॉलो करो। दोनों बाप और दादा को फॉलो करना अर्थात् क्वेश्चन मार्क समाप्त होना वा श्रीमत पर चलना। यह मुश्किल है? पूछने की आवश्यकता पड़ती है क्या? कॉपी करना है, अपना दिमाग नहीं चलाना है। बाप समान बनना अर्थात् फॉलो फादर करना। मुश्किल है या सहज है? सहज है ना? 30 साल वाले हाथ उठाओ, अच्छा 30 साल में मुश्किल लगा या सहज है? अभी देखो 30 साल वालों को भी सहज लगा तो आप जो पीछे-पीछे आये उन्हों के लिए मुश्किल है या सहज है? सहज है ना? (गर्मी के कारण सभी के हाथों में रंग-बिरंगी पंखे हैं जो हिला रहे हैं) अच्छा है, पंखों की रिमझिम भी अच्छी लग रही है। सीन अच्छी है। नवीनता होनी चाहिए ना। तो इस ग्रुप की यह भी नवीनता है, यह भी टी.वी. में आ गया। अच्छा है सभी भाग-भाग कर पहुंच गये हैं, बापदादा भी स्नेह की मुबारक देते हैं। देखो, और जो भी हद के गुरू होते हैं कितने वरदान देते हैं, एक या दस, ज्यादा नहीं देते हैं। लेकिन आपको सतगुरू द्वारा रोज़ वरदान मिलता है। ऐसा गुरू कब देखा? नहीं देखा ना! आप लोगों ने ही देखा लेकिन कल्प-कल्प देखा। तो सदा अपने भाग्य की प्राप्तियों को सामने रखो। सिर्फ बुद्धि में मर्ज नहीं रखो, इमर्ज करो। मर्ज रखने के संस्कार को बदलकर इमर्ज करो। अपनी प्राप्तियों की लिस्ट सदा बुद्धि में इमर्ज रखो। जब प्राप्तियों की लिस्ट इमर्ज होगी तो किसी भी प्रकार का विघ्न वार नहीं करेगा। वह मर्ज हो जायेगा और प्राप्तियां इमर्ज रूप में रहेंगी।

बापदादा जब सुनते हैं कि आज किसी भी कारण से कोई-कोई बच्चे मेहनत करते हैं, युद्ध करते हैं, योग लगाने चाहते लेकिन लगता नहीं है, सोल कान्सेस के बदले बॉडी कान्सेस में आ जाते हैं तो बापदादा को अच्छा नहीं लगता है। कारण क्या? अपने भाग्य की प्राप्तियां इमर्ज नहीं रहती, मर्ज रहती हैं। फिर जब कोई याद दिलाता है तो सोचने लगते हैं होना तो ऐसा चाहिए.....! इसलिए बहुत सहज पुरूषार्थ है - प्राप्तियों को इमर्ज रखो। जब से ब्राह्मण बनें तब से अपने भाग्य को स्मृति में रखो। हलचल में नहीं आओ, अचल बनो क्योंकि यहाँ आबू में यादगार क्या है? अचलघर है या हलचल घर है? अचलघर है ना? यह किसका यादगार है? आपका यादगार है ना? तो जब भी कोई सूक्ष्म पुरूषार्थ का मार्ग मुश्किल लगे, बुद्धि ज्यादा हलचल में हो, तो अपने यादगार को स्मृति में लाओ। कई बार बच्चे ज्ञान की प्वाइंट बोलते भी हैं कि मैं आत्मा हूँ, ड्रामा है, यह तो विघ्न है, यह तो साइडसीन है, बोलते भी रहते लेकिन हिलते भी रहते। हिलते-हिलते बोलते रहते। जब ऐसी बुद्धि बन जाए जो अचल नहीं हो सके तो मधुबन का अचलघर याद रखो। यह तो स्थूल चीज़ है ना! सूक्ष्म तो नहीं है। आंखों से देखने की चीज़ है, मेरा यादगार अचलघर है, हलचल घर नहीं है क्योंकि बापदादा इस वर्ष को सर्व बच्चों के प्रति मुक्ति वर्ष मनाना चाहते हैं। ऐसा नहीं हो हाथ उठवायें तो कोई का उठे, कोई का नहीं उठे, नहीं। सभी खुशी-खुशी से हाथ की ताली बजावे, (सभी बजाने लगे) चलो अभी बजा दी तो ठीक है, लेकिन ऐसे ही बापदादा इस वर्ष के समाप्ति में इतनी ज़ोर से ताली बजाते देखे। अभी तो बजाई अच्छा है लेकिन तब भी बजाना। बजायेंगे? देखो हाथ की ताली बजाके तो खुश कर दिया लेकिन बापदादा नये वर्ष में जो अपना 18 जनवरी विशेष ब्रह्मा बाप के शरीर से मुक्त होने का दिन है, तो 18 जनवरी में बापदादा फिर हाथ उठवायेगा कि मुक्ति वर्ष मनाया या सिर्फ सोचा? मनाना है, मनाना है - सोचते तो नहीं रह गये, स्वरूप में लाया वा सोचते-सोचते लास्ट में भी सोचते रहेंगे! यह रिजल्ट बापदादा देखने चाहते हैं। दिखायेंगे? अच्छा। याद रहेगा ना! प्राप्तियों को सामने रखो। बाप की याद के साथ, बाप ने जो दिया वह भी इमर्ज करो - क्या बनाया और क्या मिला!

बापदादा इस वर्ष के बाद हर बच्चे को जीवन-मुक्त स्थिति में देखेंगे। भविष्य में जीवनमुक्त होंगे लेकिन संस्कार जीवनमुक्त के अभी से ही इमर्ज करने हैं। और निरन्तर कर्मयोगी, निरन्तर सहज योगी, निरन्तर मुक्त आत्मा के संस्कार अभी से अनुभव में लाओ, क्यों? बापदादा ने पहले भी इशारा दिया है कि समय का परिवर्तन आप विश्व परिवर्तक आत्माओं के लिए इन्तजार कर रहा है। प्रकृति आप प्रकृतिपति आत्माओं का विजय का हार लेके आवाह्न कर रही है। समय विजय का घण्टा बजाने के लिए आप भविष्य राज्य अधिकारी आत्माओं को देख रहे हैं कि कब घण्टा बजायें, भक्त आत्मायें वह दिन सदा याद कर रही हैं कि कब हमारे पूज्य देव आत्मायें हमारे ऊपर प्रसन्न हो हमें मुक्ति का वरदान देंगी! दु:खी आत्मायें पुकार रही हैं कि कब दु:ख हर्ता सुख कर्ता आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी! इसलिए यह सब आपके लिए इन्तजार वा आवाह्न कर रहे हैं। इसलिए हे रहमदिल, विश्व कल्याणकारी आत्मायें अभी इन्हों के इन्तजार को समाप्त करो। आपके लिए सब रूके हैं। आप सब मुक्त हो जाओ तो सर्व आत्मायें, प्रकृति, भगत मुक्त हो जाएं। तो मुक्त बनो, मुक्ति का दान देने वाले मास्टर दाता बनो। अभी विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी आत्मायें बनो। जिम्मेवार हो ना! बाप के साथ मददगार हो। क्या आपको रहम नहीं आता, दिल में दु:ख के विलाप महसूस नहीं होते। हे विश्व परिवर्तक आत्मायें अभी अपने जिम्मेवारी की ताजपोशी मनाओ। अभी फंक्शन तो बहुत किये, लेकिन फंक्शन की रिजल्ट क्या? बस सिर्फ गोल्डन चुन्नी और ताज पहन लिया, मनाया .... इसमें बापदादा भी खुश है लेकिन चुन्नी पहनना, माला पहनना, चिंदी लगाना, पाण्डवों ने पगड़ी भी ताज मुआिफ़क पहनी, तो यह मनाना अर्थात् जिम्मेवारी सम्भालना। बच्चे खुश हुए, बाप उससे भी ज्यादा खुश हुए लेकिन भविष्य क्या! दुपट्टा अलमारी में, चिंदी अलमारी में सम्भल गई, बस यही मनाना है। नहीं। यह दुपट्टा गोल्डन स्थिति की याद निशानी है। अलमारी में सिर्फ नहीं रख देना लेकिन मन में स्मृति में रखना। मनाना अर्थात् बाप के कार्य में जिम्मेवार बनना। पसन्द है ना! या चुन्नी पहन ली बहुत अच्छा हुआ? अच्छा हुआ भी। बापदादा भी समझते हैं बहुत अच्छा हुआ। लेकिन अविनाशी सहयोगी बनना।

इस वर्ष के लिए जो बापदादा ने इशारा दिया इसके लास्ट में 18 जनवरी में, मुक्ति वर्ष का उत्सव मनायेंगे। ताली बजाने वाले समझते हैं हम बनेंगे? फिर यह नहीं कहना कि बाबा बनने तो चाहते थे लेकिन क्या करें, यह हो गया, वह हो गया। ऐसी बातों से भी मुक्ति। बनना ही है। क्या करें, नहीं। इस भाषा से भी मुक्ति। होना ही है, बनना ही है, कुछ भी हो जाए। बापदादा ने पहले भी कहा 100 हिमालय जितने बड़े ते बड़े विघ्न भी आ जाएं तो भी हटेंगे नहीं, हार नहीं खायेंगे, ताजपोशी मुक्ति वर्ष अवश्य मनायेंगे। बापदादा रोज़ चार्ट देखेगा। ऐसे नहीं यहाँ से जाओ तो ट्रेन में ही कहो पता नहीं क्या हो गया, घर में गये तो बगुले और हंस की लड़ाई लग गई, ऐसे नहीं कहना यह हो गया, यह हो गया ....। यह नहीं सुनेंगे। आपके पत्र वेस्ट पेपर बॉक्स में डालेंगे, सुनेंगे नहीं। दृढ़ संकल्प करो - होना ही है। जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता नहीं हो, असम्भव है। तो सभी दृढ़ संकल्प वाले हैं ना।टीचर्स हाथ उठाओ, टीचर्स बहुत हैं। सारे सेन्टर्स खाली करके आये हैं क्या?

देखो एक खुशखबरी सुनाते हैं - बापदादा ने देखा, अभी देखा है, सुना है कि सर्व मधुबन वालों ने अपने परिवर्तन का लक्ष्य बहुत अच्छा रखा है, लक्षण तो देखेंगे लेकिन लक्ष्य बहुत अच्छा रखा है, अपने में अन्तर जो आया है वह भी लिखा है लेकिन बापदादा को खुशी है अन्तर आना शुरू हुआ, आगे होता रहेगा। लेकिन सभी ने अपने दृढ़ संकल्प का उमंग-उत्साह अच्छा दिखाया है। अभी कागज में है लेकिन कागज में भी पहला कदम तो है। तो बापदादा को खुशी हुई क्यों? सारे वर्ल्ड के लिए हे अर्जुन मधुबन निवासी हैं। निमित्त मधुबन निवासी हैं, सेकण्ड नम्बर देश-विदेश की निमित्त सेवाधारी टीचर्स हैं और सर्व सहयोगी साथी सारा परिवार ब्राह्मण आत्माये हैं। तो मधुबन का नक्शा बापदादा देखेंगे वह बिल्कुल बदला हुआ दिखाई दे। मधुबन वाले तो कम आये होंगे। कईयों ने तो लिखा ही नहीं है। आगे बैठने वालों ने कम लिखा है, बहुत बिजी रहे हैं। लेकिन जब काम मिलता है तो लिखने में भी मार्क्स जमा होती हैं। अगर नहीं लिखा तो मार्क्स एकस्ट्रा कम हो गई, नुकसान कर दिया। जो भी डायरेक्शन मिलते हैं, डायरेक्ट बाप द्वारा मिलते हैं, चाहे निमित्त आत्मायें दादियों द्वारा मिलते हैं, उसको रिगार्ड देना अति आवश्यक है। इसमें न बहाना देना, न अलबेलापन करना। आगे के लिए बापदादा बता देता है कि मार्क्स जमा नहीं हुई। इसलिए इसको महत्व देना अर्थात् महान बनना। हल्की बात नहीं करो। बच्चे बड़े चतुर हैं, कहेंगे बापदादा तो जानते ही हैं ना। जानते तो हैं लेकिन कहा क्यों? जानते हुए कहा ना! तो ऐसे छुड़ाना नहीं चाहिए, बहुत ऐसे कार्य हैं, छोटे-छोटे जिसको हाँ जी करने में एक्स्ट्रा मार्क्स जमा होती हैं। कई ऐसे स्टूडेन्टस हैं जो किसी भी पास्ट के संस्कार के वश बहुत अच्छे उमंग-उत्साह में बढ़ते हैं लेकिन कोई न कोई सुनहरी धागा, बहुत महीन धागा उनको आगे बढ़ने नहीं देता। वह समझते भी हैं कि यह महीन धागा रहा हुआ है, लेकिन.... लेकिन ही कहेंगे। लेकिन ऐसे भी पुरुषार्थी हैं जो छोटी-छोटी कामन बातों में हाँ जी करने से मार्क्स ले लेते हैं। और हो सकता है कि वह थोड़ी-थोड़ी मार्क्स इकट्ठी होते हुए वह आगे भी निकल सकते हैं, ऐसे भी बापदादा के पास एक्जैम्पुल के रूप में हैं इसलिए सहज तरीका है छोटी-छोटी हाँ जी करने में मार्क्स जमा करते जाओ। कट नहीं करो, जमा करो। बाकी बापदादा ने देखा मैजारिटी ने अपना उमंग-उत्साह अच्छा दिखाया है इसलिए दृढ़ संकल्प के लिए विशेष उन मधुबन निवासी बच्चों को बापदादा हाँ जी करने की मुबारक देते हैं। यादप्यार भी दे रहे हैं। लाख-लाख गुणा यादप्यार दे रहे हैं। क्यों? मधुबन है बापदादा के स्वरूप को प्रत्यक्ष करने का शीशमहल। तो एक बात की तो खुशी है, अभी कागज में आया हुआ, कर्म में लाना ही है। ठीक है ना! अच्छा। मुबारक हो।

30 वर्ष वाले तो बहुत मौज में हैं ना! (1000 आये हैं) देखो बापदादा कहेंगे उठ जाओ, तो मातायें इसके बजाए आगे आ जायेंगी, इसलिए उठाते नहीं हैं। सेरीमनी वाले हाथ खड़ा करो। बापदादा को इस ग्रुप के लिए बहुत-बहुत-बहुत दिल से सम्मान है क्यों? यही पाण्डव हैं, यही मातायें हैं जिन्होंने सेवा की स्थापना में, सेन्टर्स स्थापन करने में जब बेगरी लाइफ थी, बेगरी लाइफ में सेन्टर खुले हैं, ऐसे आईवेल के समय इस सेना ने अपने तन-मन-धन से निमित्त बन के सेवास्थान स्थापन किये हैं। आईवेल के समय जो सहयोगी बनता है उनका आठ आना, आठ करोड़ बन जाते हैं। बापदादा को याद है - खुद बांधेली होते हुए भी एक कटोरी में आटा, एक कटोरी में चीनी, एक कटोरी में घी, ऐसे कटोरी-कटोरी करके लाती थी। तो सोचो कितने सच्ची दिल वाले रहे। अपने घर खर्चे से बापदादा के सेन्टर चलाये हैं, अपने पर्सनल जमा खाते से, अपने खर्चे से बचत करके सेन्टर स्थापन किये हैं, तो कितना भाग्य है इन्हों का! ऐसे समय पर सहयोगी आत्माओं को बापदादा भी नमस्ते कहते हैं। इन्हों के अनुभव बहुत अच्छे हैं, सारा भागवत इन्हों का है। इसलिए बापदादा खुश हैं और सभी बहुत उमंग-उत्साह से प्रयत्न कर पहुंच गये हैं, उसके लिए भी बापदादा खुश हैं। लकड़ियां लेके चली तो आई हैं। आपको दो टांगे हैं, इन्हों को तीन टांगे हैं। जब चलती हैं तो सीन तो अच्छी लगती है ना। इन्हों को चलाके देखो। कल इन्हों की थोड़ी यात्रा निकालना, क्लास से भण्डारे तक बस। देखना कैसे चलती हैं, बहुत अच्छी सीन लगेगी। कोई भी गिरना नहीं। अगर गिरने वाले हो तो बैठ जाना, गिरना नहीं। देखो बापदादा तो चाहते हैं इन्हों को डांस करायें लेकिन आप सब डिस्टर्ब हो जायेंगे, इसलिए बैठे ही बैठे खुशी में नाचो, हाथ पांव से नहीं। अच्छा है। आप लोगों को भी अच्छा लगा ना। बुजुर्गों की दुआयें बहुत अच्छी होती हैं। पाण्डव भी अच्छे हैं, पाण्डवों ने भी सहयोग कम नहीं दिया है। भागदौड़ करने वाले तो पाण्डव ही रहे हैं। इसीलिए पाण्डवों को भी दिल से बापदादा और सर्व परिवार की तरफ से बहुत-बहुत दुआयें हैं। अच्छा।

(बाल ब्रह्मचारी युगल भी बैठे हैं) जो बाल ब्रह्मचारी हैं वह अपनी जगह पर ही उठकर खड़े हो जाओ, अच्छा यह इकट्ठे बैठे हैं। हाथ हिलाओ। देखो अब तक जो विजय का व्रत लिया है उसमें रहने का इनाम तो मिलना ही है, मिला भी है। आगे के लिए सदा स्वप्न मात्र भी, संकल्प मात्र भी पवित्रता का खण्डन नहीं हो। अखण्ड पवित्रता- यह है बाल ब्रह्मचारियों का लक्ष्य और लक्षण। अभी तक की मुबारक है लेकिन आगे भी बापदादा यही कहेंगे कि सदा अमर भव के वरदानी रहना ही है। अमर हैं ना! खण्डित तो नहीं ना! देखो खण्डित मूर्ति का कभी पूजन नहीं होता है, तो कोई भी व्रत अगर खण्डित होता है तो वह अमर वरदानी आत्मा नहीं बन सकता है और ऐसा पूज्य जो द्वापर से कलियुग अन्त तक पूज्य बने, ऐसे इष्ट नहीं बन सकते, इसलिए सदा अमरभव। अच्छी हिम्मत रखी है, हिम्मत की मदद सदा मिलती रहेगी, अधिकारी हो लेकिन अखण्ड बाल ब्रह्मचारी। 5 वर्ष, 10 वर्ष - यह नहीं, अखण्ड। जहाँ तक ब्राह्मण जीवन है, यह अमर भव के वरदानी रहें। ठीक है ना! मंजूर है? हिम्मत है? एक हाथ की ताली बजाओ।

(10 साल वाले 200 डबल विदेशी भाई बहिनों की भी सेरीमनी है)

यह तो बहुत लकी हैं। डबल फॉरेनर्स ने भी नम्बर जीत लिया है। बापदादा को खुशी है कि डबल फॉरेनर्स पीछे नहीं रहे हैं, नम्बर सबमें अच्छा ले रहे हैं। यह दिखाता है कि जैसे अभी थोड़े समय में मेकप कर रहे हैं, ऐसे ही लास्ट में भी तीव्र पुरूषार्थ द्वारा नम्बर अच्छे ते अच्छे ले लेंगे। ऐसे निश्चय है ना! निश्चय है? 108 की माला में आना है ना? अच्छा - 108 की माला डबल फॉरेनर्स की होगी और इन्डिया वालों की? आपकी तो होगी ना। बापदादा ने छुट्टी दी है जितने भी 108 में आने चाहें, चाहे भारत वाले, चाहे विदेश वाले दोनों को छुट्टी है, बापदादा माला बढ़ा लेंगे, लेकिन आपको अवश्य डालेंगे, रहने नहीं देंगे। समझा। ट्रांसलेशन हो रही है। अच्छा है। ट्रांसलेशन करने वाले को भी मुबारक।

बापदादा तो इन्हों को (सामने बैठे हुए मधुबन वालों को) भी मुबारक देते हैं, जो आगे आगे काम के लिए बैठे हैं, कैबिन में भी बैठे हैं, तपस्या अच्छी करते हैं। एक बात में तो मार्क्स ले लेंगे, दिल से सेवा में तो मार्क्स ले लेंगे। यह भी अच्छा है, इस खाते में आपको एक्स्ट्रा मार्क्स मिलेंगी। दिल से करना। तंग होके नहीं करना, अरे क्या करें - यह तो तंग करके रखा है, ऐसे नहीं। कितना भी तंग करें लेकिन आप हर्षित रहना। प्यार से कहो आओ बहिनें, आओ भाई, क्या चाहिए.... ठीक है ना! या नहीं-नहीं, अभी नहीं। भले चीज़ नहीं दो, चीज़ देने की नहीं है, नहीं दे सकते हैं कोई हर्जा नहीं, लेकिन मीठे बोल तो दे सकते हो ना। मीठे बोल भी आधी चीज़ मिलने का अनुभव करा देते हैं। अभी नहीं, अभी नहीं जाओ, जाओ .... ऐसे नहीं। हाँ जी। करेंगे, देखेंगे, देंगे। दिल तो ले लो, चीज़ तो भले नहीं दो और सन्तुष्ट करने का लक्ष्य होगा तो चीज़ भी आ जाती है। बापदादा ने देखा है अगर कोई भी स्टॉक वाले की दिल है कि मुझे यह करना ही है, पता नहीं कहाँ से चीजें ले आते हैं, कहाँ से स्टॉक भर जाता है। सिर्फ दिल हो। मधुबन वाले हैं बहुत होशियार। चीज़ लाने में भी होशियार हैं। होशियार तो हैं, तभी तो ड्युटी मिली है ना। अगर ड्रामा ने निमित्त बनाया है तो कोई न कोई विशेषता तो है जिस विशेषता ने मधुबन में निमित्त बनाया है। सिर्फ उस विशेषता को समय प्रति समय थोड़ा सा शान्त भाव, प्रेम भाव से निमित्त बनो। बाकी अथक तो हैं। मधुबन जैसे अथक और कहाँ भी नहीं हैं। अथक भव का वरदान तो मधुबन को है। अभी इस वर्ष मधुबन क्या करेगा?

अभी मुक्त वर्ष में नम्बरवन मधुबन निवासी। ठीक है? हो सकता है या मुश्किल है? (हाँ जी) फिर तो बापदादा मधुबन वालों को भी गोल्डन बैज देगा। मधुबन वालों को बैज देना है और सभी को दिया है मधुबन वालों को मुक्त वर्ष की प्राइज़ देंगे। अच्छा बैज देंगे आपको। अच्छा।

(राजस्थान ने सेवा सम्भाली है)- राजस्थान ने इतनी भीड़ को सम्भाल लिया ना। देखो बापदादा को कहना नहीं चाहिए, लेकिन इशारा दे रहे हैं सभी इतने आये, बहुत-बहुत मुबारक हो, भले आये। सिर्फ एक बात बापदादा कहे, सुनने के लिए तैयार हो? खास टीचर्स सुनने के लिए तैयार हैं? अच्छा। भले आये, पदमगुणा वेलकम, परन्तु... इतला देना यह टीचर्स का फ़र्ज है। अचानक आ गये, बापदादा को तो खुशी है, बापदादा तो वतन में रहते हैं, लेकिन आप लोग तो साकार में रहते हो ना, तो देखो आप लोगों को ही धूप में टेन्ट में सोना पड़ा, चाहे बच्चों को खुशी है, कोई बुरा नहीं मानते हैं लेकिन टीचर्स का फ़र्ज है संख्या पहले से सुनाना। इतनी तकलीफ जो थोड़ी बहुत हुई है, वह नहीं होती। जो हुआ वह बहुत अच्छा हुआ, यह शान्तिवन का हाल तो भर गया ना। यह तो अच्छा हुआ। सिर्फ इतला करने से आप लोगों का बहुत-बहुत अच्छा प्रबन्ध होता। आगे के लिए आप आयेंगे, आपका स्वागत है, बापदादा ने यह भी सीन देखी कि कितने लोग धूप में स्थान मिलने के पहले बैठे हैं, बापदादा को अच्छा नहीं लगता। पहले से पता होने से आपकी रिजर्वेशन बुक हो जाती, फिर आपको ऐसे बैठना नहीं पड़ता। इसलिए जो थोड़ी बहुत तकलीफ हुई, उसका कारण इतला नहीं हुआ। इसलिए आगे आराम से आना, आओ भले आओ, लेकिन आराम से आना। सुना टीचर्स ने। आगे से ऐसे नहीं करना। पंखे तो ठीक मिले हैं ना। पीछे वाले पंखे हिलाओ। (15 हजार पंखे सबके हाथों में हैं) बाहर बैठने वालों को पहले से ही बापदादा नम्बरवन यादप्यार दे रहे हैं और मधुबन वाले जो त्याग कर खास सिक्युरिटी पर सेवा प्रति बैठे हैं, उन्हों को विशेष लाख गुणा मुबारक हो। सम्भाल रहे हैं ना! और आज जो देश विदेश में दूर बैठे समीप का अनुभव कर रहे हैं, उन सभी देश वालों को बापदादा खास-खास-खास यादप्यार दे रहे हैं। अच्छा साधन है। अच्छा।

राजस्थान, कानपुर किदवई नगर वाले, इन्दौर वाले जिन्होंने भी मदद की है उठो। अच्छा है देखो डबल पुण्य मिल गया। वर्तमान सेवा की दुआयें मिली और भविष्य सेवा की प्रालब्ध जमा हुई। तो राजस्थान या जो भी मददगार बने, उन सभी को बाप्दादा दिल से सदा सेवा में तख्त पर रह दुआयें लेते रहो, दुआयें देते रहो ऐसे अमर रहो, अच्छा पार्ट बजाया, उसके लिए सभी खुशी से आपको धन्यवाद दे रहे हैं।

डबल विदेशियों की सीजन अच्छी रही? सभी डबल विदेशी इस सीजन में विशेष जमा का खाता बढ़ा के जा रहे हैं! ऐसे है? जमा किया है? बहुत अच्छा।

अच्छा। अभी अगर आप सभी को अचानक डायरेक्शन मिले कि अभी-अभी अशरीरी बन जाओ तो बन सकते हो कि हलचल होगी? क्यों? लास्ट समय का यही अभ्यास पास विद आनर बनायेगा। तो अभी बापदादा भी कहते हैं एक सेकण्ड में सब बातों को किनारे कर अशरीरी भव। (ड्रिल) अच्छा।

चारों ओर के अति श्रेष्ठ भाग्यवान, परमात्म पालना के अधिकारी आत्मायें, परमात्म पढ़ाई के अधिकारी, परमात्मा सतगुरू के वरदानों के अधिकारी, सदा दृढ़ता द्वारा सफलता के अधिकारी, सदा अखण्ड योगी, अचल योगी, सदा विश्व सकाश देने के लिए अविनाशी सुख, शान्ति व सच्चे प्यार का स्टाक जमा हो।परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी, सदा सर्व प्राप्तियों को इमर्ज रूप में अनुभव करने वाले ऐसे विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

(आज बापदादा को दादी जी ने पूरे डायमण्ड हाल में चक्र लगवाया, बापदादा ने सभी भाई बहिनों को दृष्टि दी - सभा में करीब 20-21 हजार भाई बहिनें हाल के अन्दर-बाहर उपस्थित थे)

दादियों से:- सीजन की समाप्ति निर्विघ्न हुई? बापदादा यही वर्तमान समय देखने चाहते हैं कि जो विशेष निमित्त आत्मायें हैं, जैसे मुख का आवाज़ साइन्स के साधनों से दूर बैठे पहुंचता है, ऐसे मन का आवाज़ संकल्प यह भी ऐसे ही पहुंचे, जैसे यह साइन्स द्वारा मुख का आवाज़ पहुंचता है। जैसे शुरू में साक्षात्कार होते थे, इशारे मिलते थे, और उसी इशारे से कईयों को जागृति भी आई, ऐसे अभी जो आदि में हुआ वह अन्त में, पहले तो स्थापना थी तो एक ब्रह्मा बाप द्वारा साक्षात्कार हुआ, लेकिन अभी प्रैक्टिकल में शक्तियों का पार्ट है, ब्रह्मा बाप शिव बाप गुप्त है, बैकबोन है लेकिन स्टेज पर शक्तियों का पार्ट है, तो शक्तियां अनन्य भी बहुत हैं। वह एक ब्रह्मा बाप ने किया, अभी ऐसी मनोबल की शक्ति प्रत्यक्ष हो जैसे मुख का आवाज़ क्लीयर पहुंचता है ना। ऐसे मन का आवाज़ धीरे-धीरे पहुंचता जाए, बाप आ गया। सिर्फ यह आवाज़ भी पहुंच गया तो ढूढ़ने तो लगेंगे। फिर आपेही पहुंचेंगे। लेकिन यह मनोबल की सेवा अभी होनी चाहिए। यह सारे विश्व तक आवाज़ कुछ साइन्स और कुछ साइलेन्स की शक्ति द्वारा ही पहुंचेगा, जिसको मन का आवाज़ पहुंचेगा वह समझो ज्यादा समीप आयेंगे और जिसको मुख का आवाज़ पहुंचेगा, उनमें से नम्बरवार होंगे। इसलिए अभी यह साइलेन्स की विशेषता क्या है और साइलेन्स के बल से क्या-क्या कर सकते हैं, हो सकता है इस विषय पर ज्यादा अटेन्शन क्योंकि समय कम है और सेवा विश्व की हर आत्मा को सन्देश पहुंचाना है। इसलिए बापदादा ने कहा कि कुछ सुनायेंगे क्योंकि निमित्त तो आप हो वायुमण्डल में लहर फैलाने के निमित्त तो आप ही हैं। हैं ना? तो ऐसी लहर फैलाओ। सभी सहयोगी बन जाओ। अभी मन का आवाज़ मुख के आवाज़ से भी ज्यादा काम कर सकता है। तो ऐसे ग्रुप बनाओ जो इस कार्य के रूचि वाले हों और इसकी रिहर्सल करते रहें। जैसे पहले शुरू में याद का अभ्यास किया, सेवा के नये-नये प्लैन्स बनाये तो उससे इतनी वृद्धि हुई है ना। अभी जैसे पहली रचना हुई, मुख द्वारा डायरेक्ट, फिर हुई मन्सा संकल्प द्वारा ब्रह्मा द्वारा, अभी है शक्तियों द्वारा, जो कहते हैं कि शक्तियों ने बाण चलाये। तो यह बाण जो संकल्प द्वारा स्पष्ट आवाज़ पहुंच जाए, कोई बुला रहा है, कोई कुछ कह रहा है। जैसे कोई-कोई को स्वप्न पीछे पड़ जाता है, जब तक वह काम पूरा नहीं करता तो बार-बार स्वप्न उसको जागृत करता रहता। कई रिद्धि-सिद्धिवाले भी कुछ विधि से करते हैं। लेकिन योग की विधि द्वारा यह आवाज़ फैले। ऐसे सेवा के प्लैन बनाओ। जैसे अभी यह उत्सवों का वर्ष मनाया ना। अभी वह तो हो गया, अभी फिर ऐसी कोई लहर फैलाओ जो विहंग मार्ग की सेवा हो। मुख की विहंग मार्ग की सेवायें तो बहुत की। उसकी रिजल्ट तो है ही। अभी फिर कोई नवीनता। समझा। देखेंगे कौन-कौन इसमें नम्बर लेता है।

अच्छा। सभी ठीक हैं? सभी मिलकर सेवा कर रहे हैं। तो सेवा का पहाड़ भी पार हो जाता है।

अच्छा। ओम् शान्ति।